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Roli Abhilasha

Abstract

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Roli Abhilasha

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तुम्हारे साथ शब्दों का सफ़र

तुम्हारे साथ शब्दों का सफ़र

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तुम जितने कम हो जाते रहे हमारे भीतर से

कविता फैलाती जा रही अपनी जगह

कभी लौटकर आओगे तो...

हमें मानसून पसंद है पर छतरी नहीं,

हमें नहीं पसंद है सीलन भरी जगहों पर

कुकुरमुत्तों का उगना,


तुम्हारे मौन भरे शब्द और

तुम्हारी अपनी दुनिया में हमें तलाशती

स्नेह से भीगी वो आँखें

कैसे कहें कि इश्क़ ख़िलाफ़ हो गया,

न ही मरी है कोई कविता

लिपटना चाहते हैं हम उन शब्दों से

अमरबेल की तरह, लेकर तुम्हारी

सांसों से पोषण

तुम्हारी देहगंध से अवशोषित होकर

हम जीना चाहते हैं...


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