बिन सपनों की रात
बिन सपनों की रात
एक झुकाव या झोंका
क्या ला सकता था उसे मेरी तरफ़
या कि उसने अपनी दिशा
पहले से ही निर्धारित कर ली है
हवा के बहाव के साथ
उसे बहते चले जाना है
और मैं थका-थका सा उसके पीछे
कितनी दूर का सफर है ये
या कुछ तय ही नहीं
सभी कठपुतली से क्यों है समय के साथ
बेरोकटोक भागते रहते हैं
मैं भी तो हूँ वही जो सब हैं
मैं एक सुनहरा सफ़र क्यों नहीं
जिसकी नायाब मंजिल हो
कोई भटकन न हो रास्तों में
जो ना हो उसके पीछे कैसा भागना
जिस रात में सपने ही ना हों
तो क्या फ़र्क कितना जागना