एक से दस तक तुम्हारी दस्तक
एक से दस तक तुम्हारी दस्तक


जब भी देखती हूँ
क्रिकेट खेलने को
तैयार कोई मैदान
तुम बहुत याद आते हो
जब भी देखती हूँ
बल्ला किसी हाथ में
हमारी आँखों के सामने
तुम शॉट बन जाते हो
देखती हूँ उंगलियों में
घूमती कोई गेंद जब भी
लगता है तुम होते तो
फिरकी समझ जाते
होते हैं क्षेत्ररक्षण को
तैयार खिलाड़ी
तुम होते तो गेंद
उनके सर से घुमाते
बाउंसर को तुम
फुल टॉस बनाते
और कभी स्वीप शॉट लगाते
तुम होते तो हर रन पर
लोगों को कितना दौड़ाते
तुम्हारा होना ही
बहुत होता मैदान पर
और मैं कहीं अगर
दर्शक दीर्घा में होती
विश्व कप के साथ तुमने
भारत के नक्शे को बुलंद किया था
अंतिम क्षणों में हम फिसड्डी हैं
इस बहस को कुंद किया था
क्रिकेट की किताब के हर पन्ने पर
बस तुम ही याद आते हो
सभी के दिलों पर
आज भी राज करते हो
तभी तो अविजित
तेंदुलकर कहलाते हो।