एतराज
एतराज


तेरी दोनों ही बातों से एतराज़ है मुझे
तेरा बिना दस्तक दिए मेरी ज़िंदगी में आना
और फिर बिना कुछ कहे यूँ ही चुप चाप चले जाना
तेरी दोनों ही बातों से एतराज़ है मुझे
तेरा मेरी कही हर बात बेबात पर मुस्कुराना
और तनहाई में अक्सर दिन रात यूँ ही आँसू बहाना
तेरी दोनों ही बातों से एतराज़ है मुझे
मेरी हर खता को हँस कर माफ़ करते जाना
और खुद को हर मोड़ पर सज़ा का हकदार बताना
तेरी दोनों ही बातों से एतराज़ है मुझे
मुझे हमेशा ही मुकम्मल करने में लग जाना
और खुदको हरपल तन्हा मजबूर और अधूरा पाना
तेरी दोनों ही बातों से एतराज़ है मुझे
अपने मुकद्दर का हमेशा औरों को दे आना
और खुद के हाथों की लकीरों से उलझना उलझाना
तेरी दोनों ही बातों से एतराज़ है मुझे
मेरी राह के हर मोड़ पे आ के खड़े हो जाना
और अपनी मंजिल तक पहुँचकर भी न पहुँच पाना
तेरी दोनों ही बातों से एतराज़ है मुझे
हमेशा मेरे साथ मेरी परछाई बन कर चलना
और अपनी परछाई के रूख को बदलते चले जाना
तेरी दोनों ही बातों से एतराज़ है मुझे
मेरे न होकर भी मुझ पे अपना हक जताना
और हर किसी से खुद को इक अजनबी सा बताना।