पाप पुण्य से परे
पाप पुण्य से परे


जीवन में सच हो या झूठ
दोनों की अपनी अपनी कटुता है !
सच को अक्षरशः कहना
संभव नहीं होता
बात सिर्फ साहस की नहीं
दुविधा मर्यादा की होती है …
फिर झूठ से सच की निर्मम
हत्या हो ही जाती है !
सच सिर्फ़ यह नहीं
कि - सात फेरे सात वचन
निभाने चाहिए
सच यह है कि इसे
निभाने के लिए
झूठ की ऊँगली थामे
98 प्रतिशत लोग
झूठे चेहरे लिए
चलते हैं, जीते हैं
समाज,परिवार,
बच्चे ....इन कटु
सच्चाईयों के लिए
और यह स्त्री-पुरुष
दोनों की विडंबना है !.
कारण भी पूर्णतः नहीं
बता सकते
कभी जिह्वा कटती है
कभी हिम्मत नहीं होती
और कभी कहने की
जुर्रत की
तो विरोध की हिकारत
'इस तरह खुद को जलील
करने की ज़रूरत क्या है ?'
चुप्पी में सच की
दर्दनाक स्थिति
हँसी में झूठ की निर्लज्जता
'काहू बिधि चैन नहीं'
हादसों का सच !!!
कौन कह पाता है ?
खुलासे से तबियत
बिगड़ जाती है
यूँ भी खुलासे में सिर्फ़
अश्लीलता होती है
दर्द मर चुका होता है !
लोग नहीं जानें - इस ख्याल में
शहर बदल जाता है
नाम बदल जाता है
पूरा परिवेश बदल जाता है !
अंदर में सच हथौड़े चलाता है
झूठ
पत्थर और जीवन के बीच
भटकता जाता है !
सच और झूठ -
दोनों की अपनी मजबूरियाँ हैं
पाप-पुण्य से परे