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Rashmi Prabha

Others

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Rashmi Prabha

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सिर्फ बारिश

सिर्फ बारिश

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काश मैं ही होती मेघ समूह,

गरजती, कड़कती बिजली।

छमछम, झमाझम बरसती,

टीन की छतों पर,

फूस की झोपड़ी पर,

मिट्टी गोबर से लिपे गए आंगन में।

झटास बन,

छतरी के अंदर भिगोती सबको,

नदी, नाले, झील, समंदर 

सबसे इश्क़ लड़ाती,

गर्मी से राहत पाई आँखों में थिरकती,

फूलों, पौधों, वृक्षों की प्यास बुझाती,

किसी सुखी टहनी में,

फिर से ज़िन्दगी भर देती।

बच्चों की झुंड में,

कागज़ की नाव के संग,

आंख मिचौली खेलती,

छपाक छपाक संगीत बन जाती,

गरम समोसे,

गर्मागर्म पकौड़े खाने का सबब बनती,

किसी हीर की खिलखिलाती हँसी बनती,

बादल बन जब धीरे से उतरती,

मस्तमौलों का हुजूम,

चटकते-मटकते भुट्टों के संग,

शोर मचाता।

कुछ चिंगारियाँ मेरी धुंध लिबास पर

छनाक से पड़ती,

सप्तसुरों में,

कोई मेघ राग गाता

किसी अस्सी, नब्बे साल की अम्मा के 

पोपले चेहरे पर ठुनकती,

वह जब अपने चेहरे से मुझे निचोड़ती,

तब मैं बताती,

इमारत कभी बुलन्द थी।

बाबा के बंद हुक्के का धुआं,

राग मल्हार गाता,

किसी बिरहन की सोई पाजेब,

छनक उठती

काश, मैं बादलों का समूह होती,

झिर झिर झिर झिर बारिश होती 

सर से पाँव तक - सिर्फ बारिश।


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