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आओ तुम्हे चाँद पे ले जाएँ

आओ तुम्हे चाँद पे ले जाएँ

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रात रोज आती है,

हर रात नए सपनों की होती है,

या - किसी सपने की अगली कड़ी

मैं तो सपने बनाती हूँ

लेती हूँ एक नदी, एक नाव,

और एक चांदनी

नाव चलाती हूँ गीतों की लय पर,

गीत की धुन पर सितारे चमकते हैं,

परियां मेरी नाव में रात गुजारती हैं...

पेडों की शाखों पर बने घोंसलों से

नन्ही चिडिया देखती है,

कोई व्यवधान नहीं होता,

जब रात का जादू चलता है.....

ब्रह्म-मुहूर्त में जब सूरज

रश्मि रथ पर आता है

मैं ये सारे सपने अपने

जादुई पोटली में रखती हूँ...

परियां आकर मेरे अन्दर

छुपके बैठ जाती हैं कहीं

उनके पंखों की उर्जा लेकर

मैं सारे दिन उड़ती हूँ,

जब भी कोई ठिठकता है,

मासूम बन जाती हूँ

अपनी इस सपनों की दुनिया में मैं अक्सर

नन्हे बच्चों को बुलाती हूँ,

उनकी चमकती आंखों में

जीवन के मतलब पाती हूँ 

गर है आंखों में वो बचपन

तो आओ तुम्हे चाँद पे ले जायें

एक नदी, एक नाव, एक चाँदनी

तुम्हारे नाम कर जायें


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