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Himanshu Prajapati

Tragedy Others

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Himanshu Prajapati

Tragedy Others

खाली कमरा

खाली कमरा

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बैठा रहा अंधेरों में ही,

आज रात शमा जला नहीं,

मन में कुछ तो था किंतु,

अब किसी से कहा नहीं,

जिनको अपना कहते थे, 

वो अपना कोई रहा नहीं।

 

इन चार दीवारों में बस, 

एकांत ही मुझसे रीझ रहा था,

पड़ते नहीं तेरे अलावा कदम किसी के,

फर्श भी मुझ पर खीझ रहा था,

शोरगुल होता नहीं अब यहां पर,

इसलिए खाली कमरा मुझ पे चीख रहा था।


सुख सागर सारा सूख गया,

यहां हर्ष कहां से लाएंगे,

उपजाऊ जमीन भी ऊसर है अब,

यहां लोग नीर किसलिए लाएंगे,

चट्टान से सख्त हुए हैं चक्षु,

अब इनमें अश्रु कहां से आयेंगे,

अंतर है इस विरह में कुछ तो,

लेकिन तुम्हें वो फर्क कैसे समझाएंगे।


में विरक्त जग जीवन की,

नकार सारी लीक रहा था,

बिना सहारे अकेले चलना,

खुद से ही मैं सीख रहा था,

अंधेरों में उजाला खोजने को,

आंखें खोल और मींच रहा था,

क्या ही पाएगा पाकर ये,

खाली कमरा मुझ पे चीख रहा था।



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