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सुराखों के उजाले में भी, उम्मीद खोजना, सुराखों के उजाले में भी, उम्मीद खोजना,
मैं शब्दों को गठजोड़ कहूं, मैं आंखों को भीं कोर कहूं। मैं शब्दों को गठजोड़ कहूं, मैं आंखों को भीं कोर कहूं।
शोरगुल होता नहीं अब यहां पर, इसलिए खाली कमरा मुझ पे चीख रहा था। शोरगुल होता नहीं अब यहां पर, इसलिए खाली कमरा मुझ पे चीख रहा था।
इसमें अब क्या ही बचा है, खाली तो होगा जरूर यह, इसमें अब क्या ही बचा है, खाली तो होगा जरूर यह,
दिखावे करके न जाने, ना खुद की पीढ़ी में युक्त हुआ, दिखावे करके न जाने, ना खुद की पीढ़ी में युक्त हुआ,
मुझसे दूर यह बैठ गए, मैं खुद के साथ ही बैठ गया। मुझसे दूर यह बैठ गए, मैं खुद के साथ ही बैठ गया।