कल
कल
आँखें बंद किये जाने क्या सोचते हैं
सपनों में भी कल की परछाइयाँ खोजते हैं।
बीते हुए कल का हर क़तरा संजोते हैं
कल का हाथ थामे हम कल के लिए बढ़ते हैं।
जा पाए जो वापिस कभी तो फिर से जियेंगे हम
गलतियाँ कुछ हुयी थीं तभी, अब ठीक करेंगे हम।
शुरू से शुरू करने को मैं मचलता है
कभी हम संभालते हैं, कभी खुद संभालता है।
गिरता है, डरता है, फिर आगे चलता है
जो बीत गया मन को बस वो ही अपना लगता है।।