पुकार अंतर्मन की
पुकार अंतर्मन की
बेटी मर जाये मर जाये पर दाग आन पर ना आये,
क्या खूब लिखूँ उन माँ-बापों को जो बलिदान सुता का दे पाये।
सच कहती हूँ में सचमुच में तुम सा पाषाण नहीं होगा,
जो फूल कुचल दे हाथों से ऐसा बागवान नहीं होगा।
तू जीवनदायिनी है माता फिर जीवन क्यूँ उजाड़े है,
अपने हाथों की बनी गुड़िया का जीवन क्यूँ बिगाड़े है।
नहीं था गुरूर किसी पर माँ तुझ पर था विश्वास मेरा,
जब लगती चोट छोटी सी मुझको तड़प उठता तेरा जियरा।
ममता की तू मूरत है तू अमृत की धारा है,
बिन तेरे मेरी मैया ना कहीं मेरा गुजारा है।
तू शीतल छाया पीपल की में प्यासी राही हूँ अम्मा,
अब कौन मेरा बिन तेरे माँ अब कौन सुने मेरी व्यथा।
हे दीनबन्धु, सुन करुण पुकार आयी हूँ मैं तेरे द्वार,
जग ने मुझको छोडा है अब सिर्फ भरोसा तेरा है।
चरणों में सभी के वंदन, उद्देश्य नहीं है मदखंडन,
माना की दाव दर्प है पर खुदगर्ज बनो ना इतने भी।
पढ़ो एक बार और करो विचार अब लो स्वीकार
कवि के मन की, सुनलो पुकार अंतर्मन की,
सुन लो पुकार अंतर्मन की।।
