जनादेश
जनादेश
आज-कल दुनिया की फुटपाथ पर
एक सियासती खेल चल रहा है,
सत्ता के लालची हरीफ़ों के बीच
लगातार दौड़ती राष्ट्रीय समस्याएँ को
नज़रअंदाज़ करते होड़ लगी है
आगे निकलने की..!
खिड़की से झाँक रहा है मतदाता सर्कस को,
मन में मुस्काते,
खेल लो भैया खेल सारे,
हुकुम का इक्का हमारी ऊँगली पे नाचेगा..!
बाहर शोर मचाता मीडिया,
उसके पीछे खड़ा वैकल्पिक
राजनीति का अजगर
मुँह खोले निगलने को पूरा का पूरा देश..!
तिजोरी तरस रही है कुछ लालची नेताओं की
कुर्सी की तलाश में,
एक बौद्धिक साधु तमाशे में
सबका शिकार नज़र आता है,
जो है वज्र सा कठोर
जिसे तोड़ने सारी उंगलियाँ
जुड़कर मुठ्ठी बन बैठी है
जो कभी एक दूसरें की कट्टर दुश्मन थी..!
आवाम की नज़र कभी लालची चोरों पर
तो कभी बौद्धिक साधु पर
अपनी अपनी सोच से तोलती है,
चलेगा कुछ दिन सर्कस..!
बजेंगे ढोल ताशें चुनावी पड़घम के
बस देखना ये है उसके बाद के
कुछ साल मतदाता के कैसे गुज़रते हैं,
माँ भारत का सर गर्व से उठता है
साधु के सानिध्य में..!
सरहदी क्षितिज पर धवल शांति
प्रसरित होती है की रक्त रंजित
जवानों की लाशें दिखती है,
देश प्रगति की पगथार चुमता है..!
या धमाकों के सिलसिले से
धुँए में खो जाता है पूरा का पूरा देश
भारत का भविष्य तय हमें करना है।।
