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Bhavna Thaker

Others

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Bhavna Thaker

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रुकी हुई ज़िंदगी

रुकी हुई ज़िंदगी

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धूप का टुकड़ा तरसती ज़िंदगी रुकी हुई है

बंद कमरे में पड़े हुए अपने आप में गुम है..!


ये खामोशीयों के बुलबुले 

कहते हुए अपने ज़माने का इतिहास 

बसती थी कभी कुछ बस्तीयाँ,

देह के पहिए पुराने हो गये 

सफ़र ख़त्म हुए ज़माने हो गये..!


ज़िंद थी हर शय में यहाँ 

साँसें छूटी तो अफ़साने बन गये 

नया सजते ही छूटता पुराना यहाँ 

ज़िंदगी को ज़ंग लगे ज़माने हो गये..!


हर खटिये की थी अपनी अलग ही कहानी 

रूह बदलती रही तन पुराने रहे

नवसृजन की आस लिए सदा दे रही जगह 

दीवारों ने पदचाप को सुने ज़माने हो गये॥



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