प्यासी रूह
प्यासी रूह
हदें इन्तेहाँ कहे मेरेे इश्क की
तेरी चाहत में
मैं रिक्त हो जाऊँ
मैं 'न' हो जाऊँ
तुम्हारे वजूद पर
फ़ना हो जाऊँ!
दफ़न कर दूँ जीते जी खुद को
तुम में बसकर
तुम हो जाऊँ
फासलों में पला इश्क
पनाह को तरसे
तेरी बनकर
तेरा जुनून बन जाऊँ!
रूह की कशिश मेरी तड़पे
बेइन्तेहाँ प्यासी
मिले गर मेहबूब
ज़िस्त से जुदा हो जाऊँ
सदियों से है भटके
मेरी आत्मा तुझे ढूँढे
साया भी जो दिखे तेरा
में उनसे लिपट जाऊँ!