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Madhu Gupta "अपराजिता"

Tragedy

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Madhu Gupta "अपराजिता"

Tragedy

मैं अख़बार

मैं अख़बार

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मैं कोरा कागज फिर आये कलम धारी। 

और मुझ पर गढ़ दी गई तमाम तरह की ख़बरें।। 

सच्ची झूठी राजनीतिक धार्मिक राष्ट्रीय अंतरराष्ट्रीय। 

फ़िल्मी ग़ैर फ़िल्मी और बन कर मैं तैयार हो गया अखबार।। 


किस राजनीतिक ने चलाया शब्दों के कटाक्ष और किसने की तारीफ़। 

मुझ अखबार में सब बड़ा चढ़ा कर हो जाता हैं वर्णित।। 

कहां मार काट कहां हत्या बलात्कार और कहां हुई है चोरी। 

हर एक घटना का रखता हूं मैं बड़ी संज़ीदगी से हिसाब और किताब।। 


लोगों की आंख खुलने से पहले मैं हर दरवाजे़ पे देता हूं दस्तक अपनी। 

हर तरह की ख़बरों से सुसज्जित हर तीसरे घर की बन जाता हूँ शान।। 

गांव से लेकर शहर तक चाय पे बहस का बन जाता हूँ मैं सरताज़। 

मैं बढ़ाता लोगों का उत्साह और नई-नई वार्तालाप को देता हूँ आग़ाज़।। 


हाँ मैं अखबार....!! 



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