बीत गया सो बीत गया
बीत गया सो बीत गया
बीत गया सो बीत गया अब बीती पीर भुला दो तुम।
बुला रहा है चमन महकता अब तो पलके खोलो तुम।।
गम का अंधियारा छठ जाएगा खुद को थोड़ा मनाओ तुम।
पहचानो अपने होने को नदी की धारा बह निकलो तुम।।
कठिन बहुत है रोते से हंसना पर कोशिश करके देखो तुम।
छलक पड़े चाहे आंसू क्यों ना पर मुस्कान का मोती बिखेरो तुम।।
पग में कांटे लाख चुभे पर रास्ता पार तो करना तुम।
होगा कठिन पहला कदम पर हिम्मत नहीं हारना तुम।।
हमसे बेहतर और भी हैं और हमसे कमतर लाखों और।
जानलो इस बात को पहले फिर खुद से जंग जीत लो तुम।।
डसे भीड़ में तन्हाई और ख़ौफ़ तुम्हें खा जाएं तो।
छोड़ दो दुनियादारी को और खुद से दोस्ती कर लेना तुम।।
गुमसुम होकर ना बैठो अब दर्द का पैमाना छलकाओ तुम।
तोड़ो चुप्पी की नाकामी और किस्मत की बुलंदी लिख दो तुम।।
छड़ी घुमा कर नीले अंबर को अपने बस में कर लो तुम।
दुखों की बारिश छंट जाए बन कर बूंद बरस जाओ तुम।।
तंज कोई न कस पाए कुछ ऐसा हुनर दिखाओ तुम।
कर लो ज़माना मुट्ठी में कामयाबी की गेंद उछालो तुम।।
कट जाएंगे दर्द के बंधन बीती बात भुला दो तुम।
दो घड़ी ठहरो खुद के संग फिर सबको गले लगा लो तुम।।
बीत गया सो बीत गया अब बीती पीर भुला दो तुम।।
मधु गुप्ता अपराजिता
