"सुन री पतंग"
"सुन री पतंग"


सुन री पतंग छोड़ जीवन के सारे रंग, संग तेरे मैं उड़ चली।
अब जिद्द ना कोई बहस बड़ी अब कोई प्रतिद्वंद्विता की बात नहीं।।
अब ओर छोर की बात नहीं अब कोई किसी के साथ नहीं।
अब हस्ती की कोई दरकार नहीं अब बैरी जमाना साथ नहीं।।
अब हर पछतावे से दूर हुई अब कोई सच्चे झूठे रिश्ते का ठाठ नहीं।
अब धरती का रुख छोड़ चली अब देह का व्यर्थ अपवाद नहीं।।
अब गहरे ज़ख्मों से हताश नहीं अब अंतस की पीड़ा का मलाल नहीं।
अब पैरों की बेड़ियाँ सब टूट गई अब मन का पंछी भी साथ नहीं।।
अब जुगनू झुरमुट का इंतजार नहीं अब मन चकाचौध से बेताब नहीं।
अब दिल में रंजिशों का पहाड़ नहीं अब एतवार किसी पे बार बार नहीं।।
मनमीत से कोई शिकायत नहीं है अधरों पे बची कोई प्यास नहीं।
अब अनकही बात कहने की चाह नहीं अब किसी भी शर्त से दिल नाराज नहीं ।।
अब मोह वास का फंदा टूट गया अब रीते मन का अफसोस नहीं।
अब गमगीन नज़ारा साथ नहीं अब शब्दों का खोकलापन साथ नहीं।।
अब जलती नफ़रत की ज्वाला छूट गई अब अचरज से भरी कोई बात नहीं
सुन री पतंग बन कर प्रीत का धागा मैं संग डोर बन अब उड़ चली।।