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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Fantasy

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संजय असवाल "नूतन"

Abstract Fantasy

समय यात्रा यादों की

समय यात्रा यादों की

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ये कहानी है उस मन की,

जो जाने अनजाने,

अपनी यादों की गलियों में,

समय यात्रा करके

फिर से पहुंच जाता है


अपनी पुरानी यादों में।

जहां उसे अपना खोया बचपन मिलता है

जो बिखरा पड़ा था यहां वहां,

वो उसे फिर समेट लेता है खुद में,

वो उन सभी से मिलता है

जो उसके अपने थे

बचपन के यादों के साथी थे

जिनके साथ बिताया था हर पल

जो सच बहुत सुहाना था।


वो पहुंचता है अपने घर

घर के कोने कोने से उसका सामना था

वो उसका अपना कमरा

उसकी दीवारों में अब तक टंगी है

उसकी बचपन कि यादें

जिन्हे देख वो अब रूआंसा था।


दूर खड़ा पिता उसे निहार रहा था

जिसने उसे गोद में खिलाया

वो उसे पुकार रहा था

पिता को देख

उसकी बचपन कि हर याद ताजा हो गई

वो लिपट गया बाहों में उनके

जैसे वर्षों बाद उसके दिल को राहत मिली।


उधर मां की आवाज उसके कानों में गूंज रही थी,

वो उसे किचन से कलेवा के लिए पुकार रही थी,

वो उसे देखता रहा

निहारता रहा

वर्षों बाद मां मिली उसे यादों में ही सही,


तो खूब लिपट के रोया,

मां के गोद में सर रख

वो घंटों चैन से सोया,

मिल बैठ कर मां पिता के साथ

वो एक सदियां जी आया

अपनी यादों की उम्र को पंख लगा आया।


इन यादों की गलियों से,

अब वापस जाने का मन नहीं था उसका,

पर जाना था वर्तमान में ये मजबूरी थी उसकी,

क्यों कि ये उसका बीता कल था

जो उसका आज हो गया,

उन्हीं पुरानी यादों को वो समेट के 

वर्तमान में ले आया

यादों के सहारे ही सही वो फिर बचपन जी आया।


पर वो मंजर आंखों में उसके अब भी है,

बहते आंसुओं में, 

पुराने यादों के कारवां अब भी हैं,

उन यादों को मन कभी ना भूल पाएगा

ताउम्र यादों को जेहन में लेकर चलता जाएगा,

समय यात्रा यादों की इसी तरह चलता जाएगा।


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