समय यात्रा यादों की
समय यात्रा यादों की
ये कहानी है उस मन की
जो जाने अनजाने
अपनी यादों की
सुनहरे गलियों में,
समय यात्रा करके
फिर से पहुंच जाता है।
यहां उसे अपना
खोया बचपन मिलता है
जो बिखरा पड़ा था यहां वहां,
वो उसे फिर खुद में समेट लेता है ।
वो उन सभी से मिलता है
जो उसके अपने थे
बचपन के यादों के साथी थे
जिनके साथ बिताया था
हर एक पल
जो सच बहुत सुहाना था।
वो पहुंचता है अपने घर
घर के कोने कोने से
उसका सामना था
वो उसका अपना कमरा
जहां उन दीवारों में
अब तक टंगी थी
उसकी बचपन कि यादें
जिन्हे देख वो
अब रूआंसा था।
दूर खड़ा पिता
उसे निहार रहा था
जिसने उसे गोद में खिलाया
वो उसे पुकार रहा था
पिता को देख
उसकी बचपन की
हर याद ताजा हो गई
वो लिपट गया बाहों में उनके
जैसे वर्षों बाद
उसके दिल को राहत मिली।
उधर मां की आवाज
उसके कानों में गूंज रही थी,
वो उसे किचन से
कलेवा के लिए पुकार रही थी,
वो उसे देखता रहा
निहारता रहा
वर्षों बाद मां मिली
उसे यादों में ही सही।
वो खूब मां से लिपट के रोया
मां के गोद में सर रख
वो घंटों चैन से सोया,
मिल बैठ कर मां बाबा संग
वो एक सदियां जी आया
अपनी यादों की उम्र को
एक नया पंख लगा आया।
इन यादों की गलियों से
अब वापस जाने का
मन नहीं था उसका,
पर जाना था वर्तमान में
ये मजबूरी थी उसकी,
क्यों कि ये उसका बीता कल था
जो उसका आज हो गया।
वो उन्हीं पुरानी यादों
को समेट कर
वर्तमान में ले आया
यादों के सहारे ही सही
वो फिर बचपन जी आया।
वो भूले बिसरे मंजर
आंखों में उसके अब भी है
बचपन की यादें भी
तैर रही हैं
बहते आंसुओं के संग,
पुराने यादों के कारवां
छूट गए बेशक अब
पर जहन में
उनके निशान अब भी हैं।
उन यादों को मन
कभी ना भूल पाएगा
ताउम्र यादों को
सीने में लेकर
समय यात्रा
इसी तरह चलता जाएगा।