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Swati Rani

Fantasy Classics Romance

4.8  

Swati Rani

Fantasy Classics Romance

क्या दौर था वो खत का भी

क्या दौर था वो खत का भी

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क्या दौर था वो खत का भी,

प्यार का भी, हमारे यार का भी! 

चंद लफ्ज़ों में इज़हार होता था,

शब्दों को पिरो के दीदार- ए- यार होता था!! 


दूर हो कर भी बेपनाह प्यार था, 

उनकी एक झलक का दिल दीवाना था, 

ख्वाबों में कटती थी रातें,

खुद से करते थे बातें!! 


बिरहा सी थी शामें,

तनहा से थे हर सवेरे!

बिन फेरे हम थे उनके,

मांगते थे दुआओं में जिनको सांझ सवेरे!! 


कसमें थी वादे थे, 

प्यार था वफा था!

ना था रंजो ग़म, 

ना गिला था ना शिकवा था!! 


रंग रूप कहा देखते थे, 

मन से मन का मिलन युग था वो!! 

चंद पंक्तियों से, 

प्रेम के समर्पण का दौर था वो!!!


किस्तों में होती थी बातें, 

आहों में कटती थी रातें! 

हर वक्त दिल पर इख्तयार उनका था, 

रग-रग पर ऐहतराम उनका था!! 


तड़पती बेबस हुयी, 

डाकिया कि राह में तकती नजर,

हरेक शाम ढलती हुयी, 

नागिन सी लंबी रातों की डगर,


कोरे कागज़ पर रंग बिरंगी स्याही से,

दिल के अरमानों को उकेरा था! 

उनके बिन कौन थे हम, 

हर सपना अधूरा था!!


डाक बाबू के आहट से दौड़ जाना, 

काम हमारा रोजाना था! 

इंतजार, इंतजार, इंतजार,

बस यही इश्क का पैमाना था!! 


कभी-कभी तो जवाब में,

लाल गुलाब आता था! 

कुछ ना कह के भी सब कह जाना,

ये भी इज़हार- ए- यार होता था!!


चेहरे को उनके दिल में बसाये,

फोटो को सीने से चिपकाये! 

जीते थे जवाब कि तमन्

नाओं मे,

गुम से थे कोरे कागज़ के पन्नों में!! 


हर बार सोचते थे,

अपनी लेखनी से! 

कुछ ऐसा लिख जाऐंगे, 

कि रूह में उनके उतर जायेंगे!! 


लहू का एक-एक कतरा बहा लेंगे,

पर इसबार तो उनको बुला लेंगे!

दिल निकाल कर रख देंगें, 

अपनी अदाओं से मदहोश कर देंगे!! 


पर लिखने बैठते थे तो,

शब्द कम पड़ जाते थे जमानों के! 

पन्नों पर पन्ने भरते जाते, 

बात मन में रह जाते अरमानों के!! 


महीने सालों गुजरते क्यास में, 

पिया मिलन की आस में! 

दिल के हो गये थे खास, 

महसूस होते हरदम पास!! 


बिन मिले ऐसा जादू था,

कतरा-कतरा सांस उनका था!

हरेक आहट उनकी सी थी, 

जरे-जरे में हुक़ूमत उनका था!! 


बस उनके नाम से हम,

महक जाया करते थे! 

उनके चर्चों से हमारी महफिलें 

चमक जाया करते थे!! 


उन दिनों हमारी शख्सियत भी थी, 

चाँद सी रौशन! 

बागों मे फूलों के होते थे,

मनभावन गुलशन!! 


दूर होकर भी दिल के पास में, 

बस एक झलक की आस में! 

सोचते थे गुमसुम से,

क्या ये मिलन हो पायेगा!! 


प्यार के दुश्मन है पग-पग,

जात पात है रग- रग! 

क्या इनसे ऊपर उठकर,

जमाना निर्मल प्यार को स्वीकृति दे पायेगा?? 


गंगा यमुना सी पवित्र, 

नवीन, निश्चल ,पाकीजा! 

क्या हमारे जमाने की प्यार की बराबरी, 

ये आधुनिक युग कर पायेगा???


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