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Swati Rani

Tragedy

4.8  

Swati Rani

Tragedy

भिखारी

भिखारी

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एक दिन एक भिखारी आया,

समझ ना आयी कुदरत कि माया,

देख के उसकी हालत हृदय विरल हो गया,

ऐसा भी क्या पाप किया ये समझ ना आया,


हाथ पाव टुटे उसके,

छोटे छोटे दो बच्चे जिसके,

फटे पुराने कपड़े तन पर,

बिखरे बाल पेट धंसे थे अंदर,


चिलचिलाती धूप पांवों में छाले, 

गीत गाये हाथ पसारे, 

जीवन भर कि पूंजी संपत्ति जिसके, 

टुटे फुटे कटोरे मे चिल्लर थे उसके, 


मुट्ठी भर दानों के फिराक में, 

देख रहा था मुझे बड़े आस से, 

देख के उनके अश्रु कि धार,

समझा मर्म रोटी की चार,


जैसे रोटी दिया मैनें एक,

वो और कुत्ते झपटें अनेक,

कुत्ता गुर्राया वो दुबक गया

 कुत्ता ये जंग जीत गया!


मार्मिक दृश्य देख हृदय टुट गया,

ईश्वर के अस्तित्व पर सवाल उठ गया!

मानवता हो उठी शर्मशार,

उम्मीद से देखा वो मुझे फिर बारंबार, 


वो बोला मुझसे

अमीरों के घर दावत हो तो,

हम भी खुश हो जाते हैं,

आज कमसे कम बुझेगी पेट कि क्षुदा,

सोच कर जश्न मनाते हैं,


कभी किसी अमीर के पीछे,

बड़े आस से हम जाते हैं।

शायद पिघलेगा वो पत्थर दिल,


पर उनकी एक झड़प से सहम जाते हैं,

हमारी ना कोई वसीयत ना कोई जमीन,

जिंदगी भर पेट कि आग भी है दुसरे के अधीन!


इतना सुनना था मैं उसको घर ले आया,

भोजन दिया बच्चों को दुध पिलाया, 

ना था वो राम ना था रहीम, 


पर दुआएं दी उसने मुझे असीम,

आज मैनें कुछ अच्छा किया, 

उसकी तृप्ति से प्रफुल्लित हो गया, 


उसके जाने के बाद मैंने सोचा, 

मंदिर मे पत्थरों पर लाखों लूटा देते हैं, 

बाहर बैठे भिखारियों को झिड़क जाते हैं, 


क्या अंदर बैठा भगवान छप्पन भोग खायेगा ? 

और यूँ ही मंदिरों के बाहर इंसानियत

तिल तिल करके मर जायेगा ? 


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