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Dr. Swati Rani

Action

4.5  

Dr. Swati Rani

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ये सरहदें किसने बनाई हैं??

ये सरहदें किसने बनाई हैं??

2 mins
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सरहद की ये आड़ी-तिरछी लकीरें, 

किसने खिंची क्या पता 

गर जो वो तुमको मिले,

मुझे भी उसका पता देना। 


बस पुछूँगी इतना ही, 

एकता ना तुमको भायी 

सीमांत बना कर क्या मिला,

इंसानो से ऐसी भी क्या थी रूसवाई। 


पंछी, नदियां,रेतें,पवन,

उन्मुक्त से बहे तो कौन इनको रोक पाता

इनमें ना कोई मजहब,जात ना पात, 

ना कोई सीमा जो रोके इनका रास्ता। 


ये तो लगता जैसे, 

कुछ-कुछ भाईयों का बंटवारा 

कुछ जमीन, 

तुम रखो कुछ हमारा। 


लडेंगें -मिटेंगें, 

ना रखेंगें भाईचारा 

इंसानियत से भारी हुआ,

अभिमान हमारा। 


फिर भी ना हुयी संतुष्टि, 

तो सिपाहियों को खड़ा किया 

गोली बंदूक और तोपों से सजी सरहद,

और कंटीली तारों का आवरण किया। 


इंसानों को रोका

पर रोक ना पायें प्रकृति को 

वो सब जानती है, 

इसओछी,घटिया राजनीति को। 


 इसलिये तो इसकी, 

सुंदरता बरकरार है 

मानव जाती को ,

नरसंहार मिला उपहार है। 


जब-जब हलचल हो सरहद पर रोजाना, 

चुनावी बिगुल बजेगा समझ जाना 

नेता रुपी शकुनि होगा, 

मासूमों की लहु बहवा खुद चैन से सोता होगा। 


रंग एक लहू का ,

चाहे पाकिस्तानी, चीनी या हो भारतवासी 

मानवता है सबसे ऊपर, 

चाहे हो कोई देशवासी। 


सारे योद्धा होते हैं, 

किसी के घरों का हैं आफताब 

सबका लहु है लाल,

सबको है जीने का अधिकार। 


फिर भी कुछ इंच जमीन के लिये, 

कितनी जानें गयीं होंगी कुर्बान 

कितनों के तो बलिदानों को भी, 

नहीं मिला होगा उचित सम्मान। 


इतिहास गवाह है ,

इन खुनी झड़पों में 

किसी के मांग का सिंदूर ,

किसी के घर का चिराग गया। 


उस नेता का ,

कुछ ना गया 

जो युद्ध का हीरो बन,

 गद्दी पर विराजमान हुआ। 


सब अभिमान एक तरफ रख कर, 

सुलह बेहतर ऊपाय है 

क्या ताबुतों में बंद लाल ,

किसी माँ से बर्दाश्त हो पाये है?? 


जानती हुं देश के लिये ,

जान न्योछावर सौभाग्य कि बात है 

पर जब बातचीत से बात बनेगी,

फिर खून खराबे का क्या काम है। 


कुछ ना मिलेगा, 

आंसुओं, उजड़े गोद और मांग के सिवा 

अंत में पता चलेगा ,

कुछ ना बचेगा लहूलुहान

विरान भूमि के आलावा। 


हां,पर क्षमादान का ये मतलब ,

नहीं तुम सर पर चढ़ कर नाचोगे 

पर सुन लो ऐ चीन,पाकिस्तान,

 तुम्हारी गलती को अब ना बख्शेंगे। 


जितना झुक के किया ,

शांति वार्ता हमने 

हरबार पीठ में ,

छुरा भोंका है तुमने। 


तुमलोगों को नहीं है ,

अपने शूरों कि कदर 

पर यहाँ लेकर घुमता है ,

हर भारतवासी उनको अपने जिगर। 


इतिहास गवाह है जब-जब,

 किसी फौजी कि अर्थी उठी है 

हरेक घर का चूल्हा बुझा ,

हरेक मां रोयी है। 


भारत माँ के एक पुकार से ,

हर माँ अपना लाल भेज देगी 

ओ ।रिपु हमको कायर ना समझो,

गर जो कोई माँ तुम्हारे वजह से अब रो देगी। 

 

मुंह कि खाओगे इसबार,

छिन लेंगे तुमसे तुम्हारी जमीन भी 

जान न्योछावर को हैं तैयार,

हम और हमारे जवान सभी।


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