अर्थव्यवस्था
अर्थव्यवस्था
ना आय की स्थिरता,
ना व्यय का नियंत्रण,
ना वेतन, ना भत्ता,
ना व्यापार में लाभ,
सिर्फ ये बढ़ते कर,
और चक्रवृद्धि ब्याज दर,
ना रोज़गार का ज़िक्र,
ना गरीब की फ़िक्र,
ना नारी की सुरक्षा,
ना बच्चों को शिक्षा,
ना खर्च विज्ञान पर,
सिर्फ अत्याचार किसान पर,
ना सोच ना तर्क,
सिर्फ कुछ अंको का फ़र्क,
ना योजना, ना नीति,
सिर्फ झूठ की राजनीति,
सबसे बड़ा इनका काम,
बदलो शहरों, सड़कों के नाम,
गज़ब का ये लोकतंत्र है,
जहाँ सरपरस्ती ही मूल मन्त्र है,
जहाँ देशद्रोह कहलाती हर उठती आवाज़,
जहाँ शक्ति के दुरुपयोग से कुचला जाता,
हर खुलता हुआ राज़,
जनता का जो कर नहीं सकता सामना,
करता है अपने बार बार प्रधान बनने की कामना,
ये तानाशाही एक सैलाब लायेगी,
एक ऐतिहासिक इंकलाब लायेगी।