तुम अपनी कहो
तुम अपनी कहो


हम तो खुश हैं
हमारी अपनी ही खुशफ़हमी है
तुम अपनी कहो
कागज़ की है नाव मेरी
दो पल को बारिश में ठहरे न ठहरे
तुम अपनी कहो
सभी जीते हैं
हम भी हँस कर सहते हैं पीर अपनी
तुम अपनी सह
ो
सहराओं के दौर में
गर बन पाओ तो बनके रस की धार
तुम अपनी बहो
वो आग का दरिया है
कभी रहा है वो किसी हद में भला
तुम अपनी रहो
कोई सुने न सुने
फिर भी कहते सब हैं दास्ताँ अपनी
तुम अपनी कहो