हौंसला
हौंसला
बहा कहाँ फ़ौलाद लहु वो,
आईनों में टटोलता हूँ...
मुझे हौसलों से ग़िला है अपने,
क्यूँ हर शाम खाली लौटता हूँ...
हो वक्त की मौहताज़ जो,
उसे लोग बुढ़ापा कहते हैं...
खाली जाती ख़्वाहिशों से,
मैं उम्र अपनी पूछता हूँ...
बस शायरी पर गुमां है बाकी,
है भरी जो ख़्वाहिशों से...
लिख सकूँ तकदीर अपनी,
अलफ़ाज़ ऐसे खोजता हूँ...
अब नहीं आसान मुझको,
गर्म लूहों रोक पाना...
अब चला जो ठान कर मैं,
देखो कैसे दौड़ता हूँ...।