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Manoj Sharma

Children Stories

4  

Manoj Sharma

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दादी

दादी

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मुट्ठी से ज्यादा दाने थे....

पँखों से बड़ी आज़ादी थी,


क्या कहुँ क्या दिन थे दोस्त

जब जीती रहती दादी थी....


नन्ही चिड़िया का नन्हा बच्चा

हथेली पर रख देती थी,


पल्लू से ढक लेती थी....

जब बिल्ली मुझे डराती थी.


क्या कहूँ क्या दिन थे दोस्त

जब जीती रहती दादी थी....


मीठी गोली, गेंद, गुब्बारे

चूरन भी दिलवाती थी,


उसकी मुट्ठी नाज के बदले....

पुरी दुनिया आ जाती थी.


क्या कहूँ क्या दिन थे दोस्त

जब जीती रहती दादी थी....


हाथों से चुन कर दूब खिलाता

वो मुझ से भिड़ जाता था,


उसकी माँ के आगे ही....

भोले बछड़े को धमकाती थी.


क्या कहूँ क्या दिन थे दोस्त

जब जीती रहती दादी थी....।

        


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