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Anju Singh

Fantasy

4  

Anju Singh

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मेरी परछाई

मेरी परछाई

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वो साथ मेरे चलती है

मेरे साथ हमेशा रहती है


मैं रुकूं तो वह भी रुक जाती है

वह संग संग मेरे चलती है


कभी मेरे आगे आगे चलती है

कभी मेरे पीछे पीछे चलती है


कभी सामने आ खड़ी हो जाती है

कभी कदमों के नीचे आ जाती है


कोई साथ नहीं देता हमेशा

पर यह साथ हमेशा देती है


धूप और छांव में यह 

घटती बढ़ती रहती है


जो हम कर्म है करते

उसका लेखा-जोखा रखती है


ईश्वर की तरह यह भी 

हमारी गवाह बनती है


बिना किसी आशा अपेक्षा के

साथ हमारे रहती है


दुख सुख कोई भी भाव हो

वो साथ हमारे सब सहती है


सांध्य बेला जो आता

वह हमसे लंबी होने लगती है


अंधेरा जब हो जाता है 

वह मुझमें ही छुप जाती है


रोती हंसती मेरे संग

घर लौट आती मेरे संग


हंसती गाती मेरे संग

मुझमें ही छुप जाती हरदम


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उजाले में यह तो 

मेरे साथ दिखती है


अंधेरा जब छा जाए 

मुझ में ही समा जाती है


दिखें या ना दिखें

रहती हमेशा मेरे संग


कभी आगे रहकर 

आगे की राह दिखाती है


कभी मेरा सहारा बनकर 

मेरे पीछे खड़ी हो जाती है


तेरा तो सिर्फ एक ही रंग है 

तू रंग नहीं बदलती है


दुनिया में खुद के सबसे करीब

 मेरी परछाई ही तो रहती है


मुझसे ही अस्तित्व तुम्हारा

सच्चे साथी सा तुझसे ही अस्तित्व हमारा


तुम साथ हो अगर

 हर मुश्किल से उबर जाएंगे


स्याह अंधेरों से लड़कर हम

एक नई राह बनाएंगे


जो तुम बिछड़ गई

खुद को अकेला पाऊंगी


तू साथ हो मेरे हमेशा

यह अहसास सुकून दिलाएगी


तुम साथ मेरे हर पल रहती

इसलिए हो मुझ को बेहद पसंद


खुद में तुझको समा कर 

कर लूं तुझे मैं नजरबंद


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