पता नहीं,वो कहाँ जा रहा है ?
पता नहीं,वो कहाँ जा रहा है ?
आ गया उसमें एक दंभ है,कैसे आँखें तरेर रहा है,
ना जाने सबको अपना ये कैसा रूप दिखा रहा है !
जब से इस बार मध्याविधि चुनाव जीतकर आया है ,
गर्व से चौड़ा होकर खुशी से फूले ही नहीं समा रहा है !
उसे सिर्फ चाह है अपना पैसा ,पद, प्रतिष्ठा बढाने की ,
तभी सबसे पहले अपना आलीशान मकां बना रहा है !
उसे भला कहाँ समझ जनता के हित व मनोभावों की ,
आवाम की चल अचल सम्पति को बेचकर खा रहा है !
पाकर मुफ्त में इतने सारे सुख, साधन व सुविधाएं ,
अपने जैसे दल बदल लोगों के साथ जश्न मना रहा है !
जिस धरती पर जन्म लिया,उस धरा को धिक्कार रहा है ,
उसको कोई तो समझाओ,वो गहरे गर्त में जा रहा है !