सिर्फ एहसास रह जाता है
सिर्फ एहसास रह जाता है
नज़र से दूर दिल के पास रह जाता है,
दूर जाकर भी कोई कितना पास रह जाता है,
अपनों के दिए ज़ख़्मों से इंसान टूट जाता है,
जिस्म के शीश-महल में बस साँस रह जातीं हैंl
झूठ का लिबास पहन कर लोग आगे बढ़ जाते हैं,
सच भीड़ में तनहा होकर बे-लिबास रह जाता है,
बदलते वक़्त के साथ बदल जाते हैं लोग भी,
जो नहीं बदलता वो अक्सर उदास रह जाता हैl
दर्द तो आँखों से निकल कर पानी बन जाता है,
पास सुनाने के लिए सिर्फ एहसास रह जाता हैl
