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Dr. Madhukar Rao Larokar

Tragedy Inspirational

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Dr. Madhukar Rao Larokar

Tragedy Inspirational

जुल्मों सितम सहकर (१८)

जुल्मों सितम सहकर (१८)

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जुल्मों सितम सहकर भी मैं

जिंदा हूँ, यही बहुत है।

पतझड़ में, दरख्तों पर कुछ

पत्ते हैं लगे, यही बहुत हैं।

ज़माने ने रुलाया, तड़पाया

दिल भी तोड़ा बहुत,

पर उनका साथ रहा बरकरार,

जीने को यही बहुत है।।


तन्हाई में पूछते ही रहा

खुद से ही, कई सवाल;

ढेर अनुत्तरित रहे प्रश्न, कुछ

का जवाब मिला, यही बहुत है।

सूरज की रौशनी से

महरूम रहा मेरा घर

घिरा रहा अंधेरों में, जुगनुओं

ने साथ निभाया, यही बहुत है।।


ताउम्र नफरत की उन्होंने

जिन्हें खूब चाहा और माना,

मिलन हुआ, न मयस्सर मज़ार

पर वे मेरे आये, यही बहुत है।

यहाँ पानी से ज्यादा

लहू है सस्ता,

इंसानियत को शर्मसार

कर रहे नासमझ लोग,

खुदा के फरिश्ते भी हैं कुछ,

जीने को 'मधुर', यही बहुत है।।


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