STORYMIRROR

तुम मेरी गज़ल हो

तुम मेरी गज़ल हो

1 min
230


क्या लिखूं, तुम पर

तुम खुद ही, गज़ल हो।

चांद कहूँ ,लिखू चांदनी

या मानूं, तुम्हें रूपवती।


सौंदर्य इनका,दिये की लौ

तुम हो,सर्वांग सुन्दरी।।

मुखड़ा है,सीप का मोती

भावों में, फूल है खिलते।


सौम्यता की, हो मूरत

चंचल पहाड़ी झरना,हो जैसे बहते।

तुम्हें देखे,जो एक नज़र

मदहोश हो जाये,सारी ऊमर।


फूलों की, सुगंध

सावन का, उन्माद तुम्ही हो।

दिलों की, धड़कना

जीने की आरजू, तुम्हीं हो।


कवि की कल्पना

चित्रकार की, तुलिका हो तुम।

शायरों की, शायरी

फ़रिश्तों की दुआ,में हो तुम।


तुम हो आगाज़ और अंजाम में

हुश्न इश्क, के अंदाज में।

आंखें भर जिसे,देखो तुम

इंसान क्या,पत्थर पिघल जाये।


तेरे सिवा, मेरा कौन

जो कश्ती को, साहिल पे ले जाये।

तुम साथी हो,जिंदगी की

कुछ ऐसा, करो जानम।


ताउम्र रस बरसे और

कुदरत हमें, साथ ले जाये।


Rate this content
Log in

Similar hindi poem from Abstract