आ अब लौट चलें
आ अब लौट चलें


संध्या रानी के, आंचल में
सुहानी,सुरमई बयार चले।
पक्षियों गगन में, विचरण
छोड़ो, आओ अब लौट चले।
पथिक तुम, चलते हुए थक गये
मंजिल का, पता न पा सके।
अपनी सांसें, ठीक करो
विश्राम करने आ,अब लौट चले।
समय होता बड़ा, बलवान गतिशील
पीछा करने, की छोड़ो आस।
धैर्य रखो, मंजिल ना भूलो
मौका मिलेगा फिर, रख विश्वास।
जो सीढ़ी,चढ़ती जाती है ऊपर
वही तो,आती है नीचे।
किसी पर पैर, रख आगे न
बढ़ ,गिरेगा होगा नीचे।
ऐ इंसा,चलना है, तेरी नियति
कुछ बनने,करने यहाँ,तुम आये।
लक्ष्य से ना, भटकना है तुम्हें
मत बोल के, हम अब, लौट चलें।