मजदूर : (52)
मजदूर : (52)


तुम हो भाग्य विधाता
उन्नति के, गति के सूत्रधार।
मानव जीवन में, रचे बसे
पृथ्वी की तरह, सबके पालनहार।।
मजदूर है, कर्म का नियन्ता
काल चक्र की, यह है धुरी।
सफलता मिलती, सभी को
श्रम से वह, प्रगति करता पूरी।।
धरा का हर, प्राणी है मजदूर
महिमा है, इसकी निराली।
सुख, संपन्नता, इसकी दासी
मजदूर ने स्वयं, भाग्य रेखा बदली।।
मजदूरों ने, किये हैं
कारनामे बड़े।
इतिहास ने बताया है
इनके काम, बड़े बड़े।।
फिजा की हरियाली, में है ये
खेतों की, फसलों में ये।
अट्टालिका, कारखानों में ये
मैदानों, पहाडों में, दिखते ये।।
पानी को चीरकर बांधते
पहाडों को काट, रास्ता बनाते।
आग उगलती, मशीनों में
अपना खून बहा, फ़ौलाद पिघलाते।।
आवश्यकता है, आविष्कार की जननी
इंसान ने, मजदूरी कर इसने की पूरी।
मजदूर है अन्नदाता,
अर्थव्यवस्था में, भूमिका निभाता।
मिट्टी को सोना बनाकर सच्चे
नागरिक का कर्तव्य निभाता।।
उत्पादन, निर्यात, लाभप्रदता
सभी में है, मजदूर भागीदार।
कर्म हमारा, परम यह
मजदूरों को दें, उनका अधिकार।।
आओ मिलकर सीखें, इनके गुण
कर्मशील सदैव बनें हम।
आचरण और निष्ठा से, मजदूरों
को देशभक्त बनावें हम।।