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Jyoti Naresh Bhavnani

Classics Inspirational

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Jyoti Naresh Bhavnani

Classics Inspirational

स्त्री और मां बाप को संभालने की कला

स्त्री और मां बाप को संभालने की कला

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हैरान हूं मैं आज के वक्त को देखकर,

जिसमें सिर्फ स्वार्थ ही भरा है ।

जी रहा है हरकोई खुद के लिए ही,

किसी और की चिंता किसे कहां है?


टूट रहे हैं आज सारे ही रिश्ते ,

किसी को किसी की परवाह कहां है?

सब मस्त हैं अपने ही जीने में ही,

किसी के रोने की फिक्र किसे कहां है?


लालच है हर किसी को दौलत की,

रिश्तों की मर्यादा रही कहां है?

भाई बहन हो गए हैं आपस में दुश्मन,

फिर औरों की तो बात ही क्या है?


मां बाप लग रहे हैं बोझ बच्चों को,

जबसे बहुओं ने घर संभाला है।

मां बाप के अनगिनत त्यागों को,

हर कोई ही भुलाता जा रहा है।


मां बाप रो रहे है लगभग सभी यहां पर,

ये वक्त आज किस तरह का आ गया है?

कल संभालते थे जो अपने दर्जन बच्चे,

आज वही बच्चे दो को संभालने में नाकाम हैं।


आज बच्चे जी रहे हैं सभी मौज में,

मां बाप के बुढ़ापे की भी फिक्र किसे कहां है?

उनके इस हाल का ज़िम्मेदार तो,

आज का बदला हुआ समाज है।


लिखना नहीं चाहती मैं कुछ भी,

पर कलम मेरी लिखने को लाचार है।

मां बाप के आज के ऐसे बुरे हाल में,

कहीं न कहीं स्त्रियों का बड़ा हाथ है।


स्त्रियों के साथ साथ मर्द खुद भी,

अपने मां बाप की हालत का ज़िम्मेदार है।

स्त्री और मां बाप दोनो को संभालने की,

कला का उसको नहीं कोई ज्ञान है।


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