फिजूलखर्च
फिजूलखर्च
लिए टूटी तराजू हाथ में
कुछ पत्थरों के साथ में
फुटपाथ पर बैठी हुई
इक माई दिखाई देती है।
बाजार जब जाता हूं
जेब भर पैसे लिए
धीमी पर मजबूत इक
आवाज सुनाई देती है।
रहती सब्जियों के ढेर में
चंद कौड़ियों के फेर में
उसकी झुर्रियां संघर्ष की
इबारत दिखाई देती है।
हिसाब से ज्यादा वो
लेती भी नहीं कुछ भी
ईमान की मुझको
मूरत दिखाई देती है।
हां फिजूल खर्च हो गया हूं मैं अब
खरीद लेता हूं बहुत बार चीजें यूं ही उससे
बिन मोल तोल
मुझे खुद से ज्यादा उसकी जरूरत दिखाई देती है।
ईश्वर तुम पर कृपा करे माई
