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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Abstract Classics

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Dr. Vijay Laxmi"अनाम अपराजिता "

Abstract Classics

कच्चे धागे

कच्चे धागे

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ये कच्चे धागे ही नहीं स्नेह का अटूट बन्धन है।

स्नेहासिक्त इस धागे से पल मे होता हार्दिक गठबन्धन है।


कच्चे धागों से हुमायूं को कर्मवती,बना भाई आई थी।

फिर आजीवन उसने भी रक्षा कवच जो पाई थी।


तोड़े से न टूटे, दूर रहे पर न छूटे ये ऐसा बन्धन है।

श्रावणपूर्णिमा के दिन आता रक्षाबन्धन पावन है।


राखी धागों का त्यौहार नहीं भाई बहन का नाता है।

इस नाते को ही याद दिलाने यह राखी पर्व आता है।


कच्चे धागे हैं प्रतीक जीवन की नश्वर क्षणभंगुरता का।

कमजोर अनिश्चिता वाले फिर भी भान कराते गंगा की पवित्रता का।


कच्चे धागे सी सांसे आते-जाते भी कुछ कहती हैं।

स्नेह प्यार का लेप कर ये मजबूत राह नयी देती हैं।


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