दहलीज
दहलीज
कैसे लांधू दहलीज की सीमा अपनी,
हाथ जोड़े अभिभावक दिख जाते मुझे।
पराया किया दुहाई दे संस्कारों की,
अब दो दहलीज का मान रखना था मुझे।
नील गगन में डैने फ़ैला उड़ना चाहती,
पंखो पर पग दे दहलीज ने थाम लिया मुझे।
ख़्वाबों को मुक़्क़मल करना चाहती थी,
पर मर्यादा के ठेकेदारों ने रोक लिया मुझे।
घर के काम काज़ करना नहीं चाहती,
लोकलाज से मजबूर हो करना पड़ा मुझे।
सात फेरों की रीति रिवाज आये आड़े भी,
और माँ बाप की इज्जत का ख्याल आ गया मुझे।।
