हे राम !
हे राम !
हे राम । चला में किस पथ पर,
क्या उचित यही, या अनुचित पथ पर।
जीवन तो तुमने दान दिया,
फिर क्यो मैंने अपना मान लिया,
मैं कर रहा आमोद विनोद - प्रमोद।
जग पंथ में प्रभु तुम्हे भूल गया,
जीवन का सार निर्मूल भया ।
प्रभु क्यो ये मन चंचल है हुआ,
निश्चित महिपाल तेरा ही दिया हुआ।
क्यो जगप्रपंच मुझे आकर्ष लगा ?
क्यो ज्ञान चक्षु मेरा न जगा ?
पर हाँ सुरेश में जान गया,
तेरा सत्य पहचान गया,
तू हीं तो ये माया है, तूने ही इसे रचाया है।
मेरा तू कर उद्धार नाथ, जग जीवन कर साकार नाथ।
मैं तेरा हूँ तू मेरा है, नहीं पूर्ण नाथ कुछ अधूरा है।
