सत्य प्रेम।। शिवांश शुक्ला।।
सत्य प्रेम।। शिवांश शुक्ला।।
हैं प्रश्न एक प्रभु, मन-मानस में।
है 'प्रेरित' प्रभु, असमंजस में।
क्या वह प्रेम सत्य, जो तन आकर्षी।
या वह सत्य जो, मन आभासी।
क्या सत्य प्रेम की यही कथा,
जो जीवन व्यापी दे रही व्यथा ।
या वह सत्य प्रेम की परिभाषा,
जो राधे ने तुमसे था किया।
मैं तनिक विचलित असंमजित,
पर प्रभु तेरी लीला समझ गया।
था शकुनि- दुर्योधन का प्रेम अमर,
अंत हुआ बुद्धि को हर कर।
यह अमर प्रेम कलिकाल प्रखर,
है बदल रहा निज देह नीयत ।
है सत्य प्रेम मीरा का रचा,
विष प्याला पी कृष्णा ही भजा ।
तुम सत्य प्रेम के आयाम नाथ,
मैं प्रभु के चरणों का दास नाथ ।
