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Sangeeta Ashok Kothari

Classics

4  

Sangeeta Ashok Kothari

Classics

मोहब्बत की निशानी गुलाब

मोहब्बत की निशानी गुलाब

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नव कलमकारो

मोहब्बत पहली मुलाक़ात में नहीं हुई,

आपस में हर मोड़ पर टकराहट हुई,

उसने सुनाया कुछ मैं भी बोल गयी।।


रोज फ़ब्तीयां कसना आदत हो गयी,

फिर मैं भी भला कहाँ चुप बैठने वाली,

अध्यापक से उसकी शिकायत कर दी।


पूरी कक्षा के सामने उसने माफ़ी माँगी,

पर उसे उदास देख मुझे ख़ुशी नहीं हुई,

जाने क्यों दिल ही दिल में ग्लानि हुई।


बस उस वक़्त व दिन से मोहब्बत की शुरुआत हुई,

हरदम,गाहे बगाहे उसकी ओर देखती रहती,

एक दूजे की आँखों ने पढ़ ली मूक भाषा प्रेम की।


मुरझाया एक गुलाब उसकी पहली प्रेम भेंट थी,

शायद छिपाते-छिपाते गुलाब की ये दुर्दशा हुई,

पर नैनों में बेशुमार प्यार देख में घायल हुई।।


एक गुलाब ने मेरी ज़िन्दगी में हलचल पैदा कर दी,

अब ना पढ़ाई में ना ही कामों में दिल लगता था नहीं,

उस एक गुलाब से मैं अकेले में बतियाती रहती।।


वक़्त की सोपानों पर हमारी ज़िन्दगी गुजरती रही,

वो विदेश जाकर बस गया और मैं इंतजार करती रही,

फिर सुनने में आया उसने वहीं पर शादी कर ली!!


पुस्तकों के मध्य रखा है सूखा एक गुलाब आज भी,

जबकि दो गुलाबों से मेरी भी दुनियाँ हैं खिली हुई,

वक़्त-वक़्त की बात हैं नज़र आते प्राण निर्जीव गुलाब में भी।।


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