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Nirmal Jain

Classics

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Nirmal Jain

Classics

गरीब के दर्द को

गरीब के दर्द को

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सब हैं मौन

गरीबों के दर्द को

सुनता कौन


न कोई रुवाब

फटेहाल ज़िन्दगी

न कोई ख़्वाब


आँखे है नम

वो नंगा भूखा प्यासा 

ख़ुशी या ग़म


टूटती आस

तकदीर के आगे

बना है दास


सत्ता का मद

वोटों की सियासत

घटता कद।



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