सूखता नीर
सूखता नीर

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कौन समझता है
धरा की पीर
कटते वन
धरती में दरारें
झुलसे तन
बने झंझाल
चारों तरफ उगे
कंक्रीट झाल
व्यर्थ न बहे
जल ही जीवन है
दुनिया कहे
सुन ले भाई
बढ़ता रेगिस्तान
प्यासा राही