सावन का इशारा
सावन का इशारा
अज़ब ख़ालीपन है
बेचैन बड़ा यह मन है
सूने आकाश को निहारती हुई
आज़ नज़रें फिर कुछ नम है।
धीरे से तोड़ चुप्पी
अश्कों ने धीमे से
चूम लबों को कह दिया
अरे पगले,
यह तो सावन का मौसम है।
अधरों पर दबी मुस्कान
छलक उठी
और लौटी आँखों की चमक
हाथ पकड़ साए का
भिगो लिया उमीदों के छींटों से
आज़ फिर ये दामन।