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Sangeeta Agarwal

Classics

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Sangeeta Agarwal

Classics

शब्दों के पंख

शब्दों के पंख

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शब्दों के पंख देखे हैं हमने

कोमल, पैने,सीधे,तिरछे,

एक बार जो भरते उड़ान

सीधे छूते दूसरों का ह्रदय आसमान।

ये शब्द ही तो थे जिसने

सिखाया अभिमन्यु को प्रवेश,

धृतराष्ट्र बिन दृष्टि पहुंच

गए कुरुक्षेत्र प्रदेश।

शब्दों से आहत हो पांचाली के

रचा गया था महाभारत,

कृष्णा के शब्दों पंख से

अर्जुन का मोह हुआ नदारद।

शब्दों के पंख सहलाते हैं,

कभी ये गुदगुदाते हैं,

कभी बन राहत, जी को सुकून

दे जाते हैं तो कभी शूल से चुभ जाते हैं।

जब भी मैं साजन से

मिलना चाहती हूं, वो होते

हैं सात समंदर पार, लग जाते

हैं मेरे शब्दों को पंख अपार।

छू लेती हूं, सिमट जाती हूं मैं,

हो जाती है हमारी गुफ्तगू,

ये शब्दों के पंख न होते तो

कैसे पूरी होती ये आरजू।

जब होती है दूरी, तभी तो

हैं शब्द जरूरी, बाकी कहां

फुरसत है ,नैनों की नैनों से

बात हो जाती हैं पूरी।

शब्दों के पंखों पर सवार

जब एक बेचैन दिल देता है दस्तक,

दूसरा दिल उसे लपक लेता है

छोड़ लाज शर्म के सारे बंधन।


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