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मिली साहा

Abstract Tragedy Classics

4.8  

मिली साहा

Abstract Tragedy Classics

होली की कथा

होली की कथा

2 mins
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हिरण्यकश्यप एक राक्षस, बहुत समय पहले की ये बात है,

कथा ये पौराणिक, जिसमें भक्ति और विश्वास एक साथ है,

ब्रह्मदेव से वरदान पाने के लिए हिरण्यकश्यप था व्याकुल,

अमृत्व पाने हेतु की घोर तपस्या किन्तु थी यह उसकी भूल,

प्रसन्न हुए ब्रह्मदेव हिरण्यकश्यप से, वर देने को हुए तैयार,

हिरण्यकश्यप बोला ऐसा वरदान दीजिए कोई सके न मार,

अमरता का वरदान मिल जाए उसे, यही थी उसकी मंशा,

किंतु ब्रह्मदेव बोले अमरता का वरदान यह नहीं हो सकता,

ठीक है ब्रह्मदेव ऐसा वरदान दीजिए कल्याण मेरा हो जाए,

संसार का जीव जंतु, पशु पक्षी, राक्षस, देवता मार ना पाए,

साथ ही न दिन में, न रात में, न घर के अंदर न घर के बाहर,

न पृथ्वी, न आकाश में न अस्त्र न अस्त्र से जिंदगी जाए हार,

ब्रह्मदेव ने प्रसन्नता पूर्वक यह सारा वरदान उसको दे दिया,

जिसको पाकर हिरण्यकश्यप हर जगह तबाही मचाने लगा,

केवल मनुष्य ही नहीं सभी देवता भी उससे हो गए परेशान,

अपनी शक्ति से हिरण्यकश्यप लेने लगा था दुर्बलों की जान,

उसके अत्याचार से बचने हेतु करनी पड़ती थी उसकी पूजा,

हिरण्यकश्यप से जान बचाने का कोई उपाय नहीं था दूजा,

जैसे जैसे समय बढ़ता किया बढ़ता ही गया उसका आतंक,

फिर कुछ समय बाद उसके घर प्रह्लाद पुत्र का हुआ जन्म,

परमपिता परमेश्वर नारायण का, वो बालक था भक्त महान,

पिता के लाख मना करने पर भी विष्णु भक्ति उसका जहान,

हिरण्यकश्यप ने प्रयास किया कि वो करे उसकी आराधना,

प्रह्लाद ने जब कर दिया इनकार, देने लगा वो उसे प्रताड़ना,

हिरण्यकश्यप ने अनेकों बार प्रह्लाद को मारने की कोशिश,

किंतु भक्त प्रह्लाद अपनी भक्ति पर, सदैव ही रहते अडिग,

भक्त प्रह्लाद को मरवाने की एक भी योजना नहीं हुई सफल,

नारायण शक्ति से, हिरण्यकश्यप के प्रयास हो रहेे थे विफल,

फिर एक दिन वहाँ, हिरण्यकश्यप की बहन आती होलिका,

जिसको एक वरदान था मिला हुआ, अग्नि में ना जलने का,

वरदान में मिला था एक कंबल, जिसे अग्नि नहीं जलाएगी,

हिरण्यकश्यप ने सोचा, योजना में ज़रूर सफल हो जाएगी,

ओढ़ कंबल होलिका प्रह्लाद को अग्नि में लेकर बैठ जाती है,

अब तो प्रह्लाद की मृत्यु निश्चित है सोच, मंद मंद मुस्काती है,

किंतु उसी वक़्त विष्णु कृपा से, कंबल आ जाता प्रह्लाद पर,

और उसी अग्नि में स्वयं होलिका खाक हो जाती है जलकर,

फिर एक बार भक्ति विश्वास से, बच जाती प्रहलाद की जान,

प्रह्लाद फिर कहते अपने पिता से मेरे हैं केवल एक भगवान,

तब से इस दिन को, होलिका दहन के नाम से जाना जाता है,

होलिका दहन से इस दिन समस्त बुराई को जलाया जाता है,

होलिका दहन के अगले दिन, रंगोत्सव होली मनाई जाती है,

बुराई कितनी भी ताकतवर हो, अच्छाई की ही जीत होती है,


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