शापित संतान
शापित संतान
समय समय की बात है!
जो संतान जीवन का आधार है,
उसे शापित कहने से भी फिर क्यों दरकार है?
ये सभ्य मनुष्यों का कैसा व्यवहार है?
अपराध किए आप और भ्रूण गिरा दिया,
कभी नक्षत्रों,कभी मजबूरी का नाम दिया।
कूड़े के ढेर में जिगर के टुकड़े को वार दिया,
वाह रे!मनुष्य, फिर उसे शापित करार दिया।
जैसा बीज बोओगे,फल वैसा पाओगे,
बबूल बो कर आम कहां से लाओगे।
शापित संतान नहीं तुम्हारी ओछी सोच है,
सुन लो,समझ लो,ये नजरों का दोष है।
इस संसार में जो आ रहा है
वो परमात्मा का प्रकाश है।
स्वीकार करो उस सबको
जिससे भरा ये धरती,आकाश है।