तेरे सामने ही तो खड़ी थी मैं
तेरे सामने ही तो खड़ी थी मैं
तस्वीर देख कर आज भी
अकेले में रो दिया करती हूँ
आज भी अलमारी से तेरी
कमीज़ निकाल के
देख लिया करती हूँ
उसमे तेरे इत्र की खुश्बू
आज भी आती है
जो हर बार तेरे आसपास
होने का एहसास दे के जाती है
कब्र पे तेरी हर रोज
आया नहीं करती
रो-रो के अपना वक़्त
जाया नहीं करती,
उस दिन आखिरी रात थी तेरी
जब चैन से तू सो गया और
वहां बेचैन मैं खड़ी थी
पता नहीं था क्यूँ तूने वो
आखिरी बार आँख खोली थी
तुझे पता था क्या तेरे सामने
ही तो मैं खड़ी थी
होश नहीं था तुझे फिर भी
नाम मेरा सुन के ऊँगलीयाँ
जो हिलायी थी
बहुत मुश्किल से आँसू रोक कर
तुझे पुकारा था फिर भी कुछ
कहे बिना मेरी जान मुझसे ही
दूर चली थी
तुझे पता है क्या तेरे सामने ही
तो मैं खड़ी थी