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Indraj Aamath

Romance

4  

Indraj Aamath

Romance

ख़्वाब

ख़्वाब

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ख़्वाब अक्सर ख्यालों में

धीरे से मिल जाते हैंं

ना जानें क्यों सपनों में

वो रोज आ जाते हैं


तन्हाइयों से कभी हमने

नाता तो जोड़ा था

हर पल अहसास बनकर

वो महफ़िल सज़ा जाते हैं


लफ्ज़ मेरे ज़माने से 

इस क़दर रूठे थे कि

अपनी धुन में रहना

आदत सी बन गई हैं


तुम आए एक दफा

मेरी जिंदगी में तो

रात एक ख़्वाब में गुजरी

दिन तेरी तलाश में गुजरा


एक नाता सा हो गया

इस बेजुबान को तुझसे

पथ दर पथ चलता रहा

तुझे पाने की खातिर

और तुम टपरी के कोने में

तेरी मेरी उन यादों से

गुफ्तगू करती रही।


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