इश्क मोहताज नहीं है
इश्क मोहताज नहीं है
इश्क सदियों से
अमर होना चाहता था
पर हमेशा छला गया,
कभी जाति ने छला
कभी धर्म ने छला
तो कभी उम्र ने छला,
विरह की वेदना में
आंसू गिरते रहे
पर ओहदे में छिपी तड़प
घुट घुट कर मरती रही,
इश्क तो लाजवाब था
हर रंग में सिमटना चाहता था,
पर इश्क के हर रंग
इंद्रधनुष की तरह
मिले तो थे पर
एक दूसरे में समाए नहीं,
इश्क ने जहर पिया
इश्क सूली पर चढ़ा
कही पर कोड़े खाए
तो कही इश्क पर
लोगों ने पहरे बिठाए,
इश्क ने हर दर्द सहा
पर इश्क को मिला कुछ नहीं
इश्क ने नम आंखों
में उम्मीदें जगाई
बिखरे घरौंदों को
जोड़ना सिखाया,
इश्क ने कंधों पर
सिर रखकर
जीने का हौसला बढ़ाया,
इश्क मोहताज नहीं है
विवाह के बंधन का,
इश्क मोहताज नहीं है
एक ही रंग धर्म का,
इश्क मोहताज नहीं है
अमीरी गरीबी का,
इश्क मोहताज नहीं है
हमउम्र के होने का,
फिर भी इश्क
संघर्ष करता रहा ,
अपने अस्तित्व के
लिए जलता रहा,
ऐसा भी नहीं है कि
इश्क जमींदोज हो जायेगा
पर इश्क सदियों से
लड़ता रहा
आगे भी लड़ता जायेगा।