हम मिलन की चाह में
हम मिलन की चाह में
तान तुम छेड़ो प्रणय की,
हम मिलन की चाह में !
हैं पलक हमने बिछाए,
आज तेरी राह में।।
आज खुद को भूल बैठे,
हम कहाँ अब हम रहे !
प्रीत का बंधन अनूठा,
भावना में बह रहे !
हो गया दीदार जब भी,
दिन कटे हैं आह में।।
बोल के हम अर्थ खोजें,
डूबते ही जा रहे !
जो मिले प्रतिदान में वे,
सब हमें हैं भा रहे !
खोजने मोती चले हैं,
आज भी हम थाह में।।
जो चढ़ाया रंग तुमने,
वह उतरता है नहीं !
छवि तुम्हारी हृदय अंकित,
मन बिसुरता है नहीं !
धड़कनों में आ बसे हो,
औ जुबां की वाह में।।
अब भुलाए भूल पाऊँ,
यह कहाँ संभव रहा !
नित्य परिवर्तन यहाँ पर,
जो मिला अभिनव रहा !
वक्त ने बाँधा वचन से,
कट रहा निर्वाह में।।

