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bhagawati vyas

Romance

4  

bhagawati vyas

Romance

हम मिलन की चाह में

हम मिलन की चाह में

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तान तुम छेड़ो प्रणय की,

हम मिलन की चाह में !

हैं पलक हमने बिछाए,

आज तेरी राह में।।


आज खुद को भूल बैठे,

हम कहाँ अब हम रहे !

प्रीत का बंधन अनूठा,

भावना में बह रहे !


हो गया दीदार जब भी,

दिन कटे हैं आह में।।

बोल के हम अर्थ खोजें,

डूबते ही जा रहे !


जो मिले प्रतिदान में वे,

सब हमें हैं भा रहे !

खोजने मोती चले हैं,

आज भी हम थाह में।।


जो चढ़ाया रंग तुमने,

वह उतरता है नहीं !

छवि तुम्हारी हृदय अंकित,

मन बिसुरता है नहीं !


धड़कनों में आ बसे हो,

औ जुबां की वाह में।।

अब भुलाए भूल पाऊँ,

यह कहाँ संभव रहा !


नित्य परिवर्तन यहाँ पर,

जो मिला अभिनव रहा !

वक्त ने बाँधा वचन से,

कट रहा निर्वाह में।।


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