" स्वाधीनता सस्ती नहीं "
" स्वाधीनता सस्ती नहीं "


स्वाधीनता सस्ती नहीं,
यह माँगती बलिदान है।
शोणित बहा, फाँसी चढ़े,
जां सैकड़ों कुर्बान है।।
धर्मांधता औ क्रूरता,
सदियों रही करती दमन।
बिखरी नहीं यह संस्कृति,
लुटता रहा अपना चमन।
हम टूट कर बिखरे कहाँ,
भूले नहीं उत्थान है।।
लुटते महल, पिटती प्रजा,
थी दासता की बेड़ियाँ।
बाँधा नहीं जब कर्म ने,
बिखरी मिली थी वेणियाँ।
जौहर हुए हैं अनगिनत,
स्थापित किए प्रतिमान है।।
कुछ सिंह निकले मांद से,
आक्रोश को अपने जगा।
सोया हुआ जो तंत्र था,
वह काँपने भय से लगा।
कुछ घिर गए, कुछ लड़ गए,
सब पर हमें अभिमान है।।
वाणी बनी जब शस्त्र तो,
जन जागरण होता रहा।
आधार था जन शक्ति का,
जो आमरण होता रहा।
भागी विदेशी ताकतें,
जनतंत्र का फरमान है।।
स्वाधीनता लहरा रही,
जांबाज सीमा पर खड़े।
है नाज़ तुम पर ए वतन,
तेरे लिए जी भर लड़े।
माँ भारती को है नमन,
अधरों बसा स्तुतिगान है।।